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Wednesday 1 April 2015

इतिहास की अवहेलना

आज में आपसे एक गंभीर विषय के बारेमें बात करना चाहता हूँ| यह बात हे इतिहास से की गयी अवहेलना की, यह बात हे ऐतिहासिक घटनाओं के साथ की गयी छेड़छाड़ की, यह बात हे इतिहास के महापुरुषोसे की गयी अमर्यादा की, पक्षपात की| स्कूली पाठ्यक्रम राजनैतिक सोच का पिंजर बनके रह गया है – छत्रपती शिवाजी महाराज जैसे महामानव के लिये सिर्फ एक परीच्चेद| क्या उनका महान योगदान आज बस एक औपचारिकता बन कर रह गया है?

एक सरकार सेक्युलर इमेज लेकर आती है, तो दूसरी हिंदुत्ववादी सोच देने की कोशिश करती है|

तो आपके मन में प्रश्न तो जरूर उठा होगा, आखिर इतिहास की अवहेलना की किसने? उन शासकोने, जीन्होने इतिहास में अफरातफरी करणे कि कोशिश कि, या फिर उन समाजके घटकोने जिन्हे उनके सोचके अलावा दुसरे सोच का अस्तित्व मंजूर नही|

इतिहास हमेशासे शाहोंका, शासकोका दास बनके रहा हे| वक्त-बे-वक्त शासकोने इतिहास को तोरमरोड़ कर जनता के सामने रखा|

इतिहास की एक खासियत यहभी हे की वह हमेशासे जीतनेवालोके पक्ष में रहा हे| जो जीते उन्होंने उसे अपनी तरह से मोड़ा| पहलेके साहित्य, संगीत, कला को निचोड़ा|

मूज़े इस प्रश्नका उत्तर दीजिये – क्या कृष्णनीतिका मायना आज भी वही रहता अगर महाभारत के रणसंग्राम में कौरावोंकी जीत होती? क्या चाणक्यनीति आज भी राज्यव्यवस्था और परदेशनीति का प्रदर्शक होती अगर चन्द्रगुप्त नंदवंश का विनाश करने में असफल रहता|

हमें क्या बोलना चाहिए, हमें क्या नहीं बोलना चाहिए, यहाँ तक की हमें क्या सोचना चाहिए इसकाभी नियंत्रण सदियोंसे शासकोंने किया हे| मैं मानता हूँ की यह एक तरह का मानसिक बलात्कार हे| एक शृंखलामें हम बंधे हुए हे, हमें उसे भेदना होगा| अभिमन्यु को चक्रव्यूह से निकलने का मार्ग ढूँढना होगा|

कितनी अजीब बात है की समाज के विशिष्ट घटकोंने अपने नेता के विचारोको सिर्फ और सिर्फ अपनी जातिके विचारोंतक ही सिमित किया| इसका में उदाहरण देता हूँ|

हिंदुत्ववादी कहते हे छत्रपति शिवाजी महाराज हमारे राजा थे| शिवाजी महाराज को हिन्दुस्वराज्यसंस्थापक कहके धर्मान्धोंने उनके विचारोका अपमान किया है| क्या उन्होंने स्वराज्य की स्थापना हिंदुओंके लिए की थी? जी नहीं साहब, उनके नौसेना का प्रमुख एक मुस्लिम था, हालाकि उन्हें औरंगजेब की गिरफ्त से मुक्ति दिलानेमें सहाय्य करने वाला एक मुस्लिम था| जिसके सैन्य में २५ प्रतिशत से ज्यादा इतर धर्मीय सैनिक हो, वो सिर्फ एक हिन्दू राजा कैसे हुआ?

वही बात रही महाराणा प्रताप की| राजपूतोंनें उन्हें अपना राजा बताया| वह सिर्फ राजपूतोके तारणहार थे तो उनकी फ़ौज से ज्यादा राजपूत तो अकबर की सेना में थे| अकबर का सेनापति मानसिंग तो राजपूत ही था न|

आंबेडकर को दलितोने अपना नेता बताया, तो लोहियाजिको समाजवादियोंने अपना चेहरा बताया| स्वातंत्र्यवीर सावरकर जैसे महान देशभक्त को इन राज्यकर्तावोंने तो मानो इस तरीकेसे पेश किया की वह हिंदुत्वकी रट लगानेवाले कोई दहशतवादी हो|

इन तरह की वोट बटोरनेवाली राजनीतियां एवं राजकीय अस्पृश्यता की वजह से कई महान युगपुरुषोंको सदियोंके लिए इतिहास की कलाकोठडीमें दफनाया गया|

क्या आपको लगता हें की हम अस्पृश्यता मिटानेमें सहीमे कामयाब रहे हैं? जी नहीं जनाब| राजकीय अस्पृश्यता तो अभीभी चरणसिमापे हें| दक्षिणपंथीयोंने नेहरु को इसका शिकार बनाया, तो वामपंथियोंने सावरकर, मुखर्जीको इसका शिकार बनाया|

क्यूँ प्रादेशिक राज्य जितने के बाद मूर्तिभंजकोने अजंता, एलोरा जैसे महँ शिल्पकला के राज्य को बर्बाद करने की कोशिश की? साहित्य, इतिहास और राज्यव्यवस्था इन चीजोंका सही मेल होनेकी जरुरत हें|

आज में अंबेडकरजीके विचारोंके बारेमे बोलना चाहूँगा तो मुजे दसबार सोचना पड़ेगा की कही दलितोकी भावना तो नहीं दुःख जाएगी? कुरआन के तत्वज्ञान पे बात करू तो कही मुस्लिमोंको तो आपत्ति नहीं होगी?

स्वैर विचारधारासे अपने कलम को जीवन देनेवाले लेखक की मृत्युसे ज्यादा भयानक उपहास इस जीवनमे क्या हो सकता हे? इतिहास की अवहेलना मेरे अन्दर का वह डर हे, जो मुजे अपनी भावनाओंको मुक्त करने से रोकता हे|

इतिहासमें अगर कुछ बदलाव लाना हे तो प्रथम एन महामानवोंको इस राजकीय, धार्मिक और सामाजिक गुटबाजिकी श्रुंखलासे हमें मुक्त करना होगा|

किस महाराजा ने कोनसे युद्ध मी विजय प्राप्त कि यह छात्रोसे रटवानेसे बेहतर मी मानता हुं कि उस महान व्यक्ती कि सोच क्या थी, उनके विचार क्या थे, वो जनता तक पहुंचाना बहोत जरुरी हे| इतिहास के ऊपर जो राज्यव्यवस्था का अंकुश है, उसे उठाना होगा| जिस दिन एक निष्पक्ष इतिहास आनेवाली पिढी को पढाया जायेगा, उस दिन में मानता हून कि वो भारतीय कालखंड का सुवर्णमध्य होगा|
-Digvijay.