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Tuesday 5 May 2020

तुम चले जाओगे, थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे - अशोक वाजपेयी

तुम चले जाओगे
पर थोड़ा-सा यहाँ भी रह जाओगे
जैसे रह जाती है
पहली बारिश के बाद
हवा में धरती की सौंधी-सी गंध
भोर के उजास मे
थोड़ा-सा चंद्रमा
खंडहर हो रहे मंदिर में
अनसुनी प्राचीन नूपुरों की झंकार


तुम चले जाओगे
पर थोड़ी-सी हँसी
आँखों की थोड़ी-सी चमक
हाथ की बनी थोड़ी-सी कॉफी
यहीं रह जाएँगे
प्रेम के इस सुनसान में


तुम चले जाओगे
पर मेरे पास
रह जाएगी
प्रार्थना की तरह पवित्र
और अदम्य
तुम्हारी उपस्थिति
छंद की तरह गूँजता
तुम्हारे पास होने का अहसास
तुम चले जाओगे
और थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे।

-अशोक वाजपेयी

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